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Writer's pictureKumar Nandan Pathak

लखनऊ में कुछ भ्रष्ट यातायात पुलिसकर्मी डबल इंजन की सरकार के संकल्प को लगा रहे बट्टा

डीजीपी साहब के आदेशो पर पलीता लगा हो रही यातायात बूथों में अवैध वसूली

सीसीटीवी कैमरे के सुचारू रूप से संचालन के बावजूद चालक को चेकिंग के नाम पर किनारे ले जाने का क्या औचित्य


केपीपीएन कार्यालय।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बात की जाए तो इस डबल इंजन की सरकार में लगातार अपराधियों पर नकेल कसने तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा संसद व रैलियों में माफियाओं को मिट्टी में मिला देने की बात भी सही होती नजर आई है। किंतु जनता की माने तो कही न कही माफियाओं को मिट्टी में मिलाने के संकल्प में अपने मातहतों के कारनामों को दरकिनारे करता देखा गया है। फिर ऐसे में यह कारनामा भले ही कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों का क्यों न हो ठीकरा तो मौजूदा सरकार पर ही फूटता नजर आ रहा है। दरअसल मामला है राजधानी लखनऊ का वैसे तो कभी नगरनिगम तो कभी एलडीए व लगातार मीडिया व सोशल मीडिया की सुर्खियों में रहने वाली लखनऊ पुलिस के कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों की रिसवतखोरी का मामला सामने आया करता है। खैर ऐसा क्यों न हों मामले में जांच की तलवार लटका कर कुछ दिनों तब वसूली स्थल से हटाकर मामले को शांत करने की कला में महारत जो हासिल है। ऐसा ही कुछ कारनामा सूत्रों की माने तो लखनऊ यातायात पुलिसकर्मी का सीतापुर मार्ग से प्रारंभ कर फैजाबाद मार्ग तक देखने को मिल रहा है। जहां एक ओर डीजीपी साहब के आदेशो को दरकिनार करते हुए आए दिन चौराहों पर बने यातायात पुलिस बूथ के अंदर चेकिंग न करने के सख्त आदेश के बावजूद भी उस आदेश को चंद सिक्कों की चकाचौंध में दरकिनारे कर मासूम जनता की जान से खिलवाड़ करते नजर आते हैं। वैसे तो लगातार यातायात व्यवस्था में तैनात कुछ भ्रष्ट पुलिसकर्मियों की इस निंदनीय कार्यशैली की भेंट समस्त यातायात विभाग चढ़ते नजर आता है। ऐसी स्थिति में दिन-रात परिवार से दूर देश व प्रदेश की सेवा में तैनात पुलिसकर्मियों पर भी बट्टा लगता नजर आ रहा है। पर जनता का एकमात्र सवाल फिर भी वही आकर खड़ा हो जाता है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री के निर्देश में कार्यरत डीजीपी साहब द्वारा वाहनों को जबरिया रोकर या उनके वाहन पर लाठी ठोकर व चाभी निकालकर आम जनता से बदसलूकी करने व मानकों को ताक पर रख यातायात बूथ के अंदर ले जाकर अवैध धन उगाही की इस परम्परा में आखिर कब तक बदलाव आएगा क्योंकि ऐसी स्थिति में ना सिर्फ वर्दीधारी द्वारा नियमों की अवेहलना होती है अपितु मानवाधिकार का भी हनन होता प्रतीत होता है। वो भी ऐसी स्थिति में जिन तिराहे व चौराहों पर सुचारू रूप से तीसरी आंख (सीसीटीवी कैमरे) का संचालन हो रहा है। ऐसे में सवाल यह भी बड़ा है कि सरकार के भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने के इस संकल्प में कहीं उनके मातहात पलीता ना लगा दें। जिसका खामियाजा मासूम जनता को अपनी खून-पसीने की कमाई फर्जी बड़े चालान या मित्र पुलिस के स्थान पर उन भ्रष्ट कर्मचारियों की जेब गर्म करने में निकल जाए जिससे देंश विकास मार्ग के स्थान पर विनाश मार्ग की ओर अग्रसित हो जाएं। सरकार के संकल्प कागजों में बहुत खूब परंतु धरातल पर उतर ही ना पाए

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