के पी पी एन संवाददाता मुनीर अहमद अंसारी
बाजिदपुर(अयोध्या)। मदरसा दारुल उलूम गौसिया क़ुतुबिया सीवन बाजिदपुर केहाफिज मोहम्मद ताहिर ने बताया कि रमज़ानुल मुबारक का महीना बहुत ही अज़मत बरकत वाला महीना है जिसमे तीन अशरे है।उन्होंने कहा कि रमज़ानुल मुबारक एक बहुत ही अज़ीम पाक और बरकत वाला महीना है यह महीना इस्लामी महीनो में से सबसे पाक महीना है माहे रमज़ान में नेकियों का अज्र बहुत ही ज्यादा बढ़ जाता है लिहाज़ा कोशिश कर के ज़्यादा से ज़्यादा नेकियां इस महीने में जमा कर लेनी चाहिए। रमज़ान के महीने में एक दिन का रोज़ा रखना एक हज़ार दिन के रोज़ों से अफ़्ज़ल माना जाता है और रमज़ान के महीने में एक मरतबा तस्बीह़ करना इस माह के अलावा एक हज़ार मरतबा तस्बीह़ करने से अफ़्ज़ल है और रमज़ान के महीने में एक रक्अ़त पढ़ना गै़रे रमज़ान की एक हज़ार रक्अ़तों से अफ़्ज़ल होता है।
रमज़ानुल मुबारक के महीने की अहमियत
रमजान शरीफ़ के महीने की अहमियत और अफ़ज़लियत हर मोमिन जानता है हज़रते अमीरुल मुअ्मिनीन ह़ज़रते सय्यिदुना उ़मर फ़ारूक़े आ’ज़म रज़ियल्लाहु से रिवायत है कि हुज़ूरे अकरम ने फरमाया की
रमज़ान में जि़क्रुल्लाह करने वाले को बख़्श दिया जाता है और इस रमजान के महीने में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से मांगने वाला कभी भी मह़रूम नहीं रहता है।रमजानुल मुबारक की रात और दिन हर लम्हा और पूरा महीना खुसूसियात का है मगर इसमे खास यह भी है कि इसी पाक महीने में कुरआन शरीफ नाज़िल हुआ कुरआन शरीफ लौहे महफूज से आसमाने दुनिया की तरफ इसका नुजूल रमजानुल मुबारक की 27 तारीख में हुआ।
कायनाते आलम का इस रौशन हकीकत से कौन इंकार कर सकता है कि इंसान को अल्लाह तआला ने अशरफुल मखलूकात बनाया और इसके लिए ऐश व आराम फरहत बख्श हवाएं और जिंदगी गुजारने के हजारों असबाब व वसायल महज परवरदिगार का अपने बंदो पर बहुत एहसाने अजीम है। इस्लाम मज़हब हिदायत देता है कि अगर तुम सरमायादार हो या आप मालदार है तो दूसरे लाचार गरीब मुसलमान भाइयों का उसमें हक जानकर उसको अदा करो ताकि अल्लाह तआला की आपको खुशनूदी हासिल हो अल्लाह तआला का इरशाद है की तुम हरगिज़ भलाई को न पहुंचोगे जब तक राहे खुदा में अपनी सबसे प्यारी चीज खर्च न करो।
हाफिज ताहिर ने कहा की ख़ालिके कायनात ने माहे रमज़ान में रोज़ा रखने का हुक्म दिया है ताकि हर मोमिन को गरीबी और तंगदस्ती में मुब्तला और भूक-प्यास से बिलकते इंसानों के दर्द व गम का एहसास हो जाए और दिल व दिमाग में जरूरतमंद की किफालत का जज्बा-ए-सादिक पैदा हो जाए और खुसूसी तौर पर मुसलमान रमजानुल मुबारक के महीने की इबादत की बदौलत अपने आप को पहले से ज्यादा अल्लाह तआला के करीब महसूस करता है।और महीने भर की इस मश्क का खास मकसद भी यही है कि मुसलमान साल भर के बाकी ग्यारह महीने भी अल्लाह तआला से डरते हुए जिंदगी गुजारे,ज़िक्र व फिक्र, इबादत व रियाज़त, कुरआन की तिलावत और यादे इलाही में खुद को लगा दे।
रमजान एक ऐसा महीना है जिसमें हर दिन और हर वक्त इबादत होती है रोज़ा इबादत इफ्तार इबादत इफ्तार के बाद तरावीह का इंतज़ार करना इबादत तरावीह पढ़कर सहरी के इंतजार में सोना इबादत गरज़ कि हर पल खुदा की शान नजर आती है और कुरआन शरीफ में सिर्फ रमज़ान शरीफ ही का नाम लेकर इसकी फज़ीलत को बयान किया गया है रमज़ान के अलावा और किसी भी महीना को इतनी नेमत नहीं बख्सा गया है।
रमजान के तीन अशरे व एक रात जो हज़ार महीनों से अफ़ज़ल
हाफिज ताहिर ने कहा कि अल्लाह ताअला ने लारमज़ानुल मुबारक के महीने को तीन अशरों में तकसीम किया है जिसमें पहला अशरा रहमत का है व दूसरा अशरा मगफिरत का है और तीसरा अशरा जहन्नम से आज़ादी का उन्होंने कहा कि इन तीनों अशरों की मख़सूस दुआओं को खूब कसरत के साथ पढ़ना चाहिए जिससे अल्लाह ताअला अपने बन्दों से राज़ी हो जाए। उन्होंने कहा कि इस अज़ीम महीने एक रात ऐसी है जिसे शबे कद्र कहा जाता है जो हजार महीनों से अफ़ज़ल है रमजान में शैतान इब्लीस और दूसरे शैतानों को जंजीरों में जकड़ दिया जाता है (जो लोग इसके बावजूद भी जो गुनाह करते हैं वह नफ्से अम्मारा की वजह से करते हैं) उन्होंने कहा कि रमज़ान में नफिल नमाज़ का शवाब फर्ज़ के बराबर और फर्ज़ नमाज़ का शवाब 70 गुना ज्यादा मिलता है रमज़ानुल मुबारक में सहरी और इफ्तार के समय मांगी गई दुआ बारगाहे इलाही में कुबूल होती है।
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