केपीपीएन संवाददाता
फैज़ान क़ुरैशी
मुरादाबाद:समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य आज़म खान मुलायम सिंह यादव के दाएं बाजू थे। मुलायम सिंह यादव ने दलित पिछड़े और मुस्लिमो के गठजोड़ से चार बार सूबे में सरकार बनाई। मुसलमानो को नुमाइंदगी के नाम पर सपा ने हमेशा आज़म खान को ही प्राथमिकता दी क्योंकि आज़म खान पार्टी के बुनियादी सदस्य के साथ साथ सपा में मुस्लिम कायद थे। कई कई मिनिस्ट्री के साथ राष्ट्रीय महासचिव व पार्टी में पार्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्य थे। एक तरफ पिछड़े दलितों के बात मुलायम सिंह यादव करते थे तो दूसरी तरफ आज़म खान मुस्लिम समाज के मुद्दे पर खुलकर बोलते थे। सपा में आज़म खान के अलावा मुस्लिम ब्रांड नेता डॉक्टर शफीक उर रहमान बर्क भी हैं जो एक बार बसपा से भी सांसद बने थे लेकिन मुस्लिम समाज का पार्टी में प्रतिनिधित्व आज़म खान ही करते थे। सहारनपुर से काजी रशीद मसूद व बदायूं से सलीम इकबाल शेरवानी जैसे कद्दावर नेता यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं और यह दोनो लोग भी दूसरे दलों में चले गए थे लेकिन आज़म खान को पार्टी से निकाला भी गया लेकिन फिर भी वह दूसरे दल में नहीं गए।
आज आज़म खान जेल में हैं और सपा पर आरोप भी लग रहे हैं कि वह आज़म का साथ नहीं दे रहे हालांकि अभी अखिलेश यादव ने रामपुर में साइकिल चलाकर आज़म के साथ खड़े होने का संकेत तो दिया था। अब अगर ऐसे ही संकेत देने और साइकिल चलाने से सपा बाईस में बाइसिकल लाना चाहती है तो यह एक हसीन सपने के सिवा कुछ नहीं। मुलायम सिंह यादव ने यादव समाज को समेट कर रखा था तो आज़म खान ने भी मुसलमानो को सपा के पाले में कर रखा था। मुलायम सिंह यादव और आजम खान और समाजवादी पार्टी के बाकी सभी नेता जमीन पर संघर्ष करते थे सिर्फ साइकिल पर पैडल नही मारते थे। आज पूरे प्रदेश में समाजवादी पार्टी में मुसलमानो का प्रतिनिधित्व करने वाला कौन है? आज़म खान के स्थान पर सपा ने किस नेता को जिम्मेदारी दी है। आज कांग्रेस,एमआईएम व अन्य दल सपा पर आरोप लगा रहे हैं की उसने न सिर्फ आज़म खान को अकेला छोड़ दिया बल्कि वह मुस्लिमो के मुद्दे पर भी खुलकर नहीं बोल रही है 2012 में सपा ने मुस्लिमो को 18% आरक्षण देने की बात कही थी आज सपा के पास मुसलमानो को देने के लिए क्या है? उर्दू मीडिया ने तो यहां तक सवाल छापा कि समाजवादी पार्टी ने मिल्ली जमातो से अपना रिश्ता खत्म किया? और यहां तक लिखा कि सपा मुस्लिमो के टिकट में भी कटौती करेगी।
सपा के खिलाफ जिस तरह से उसकी प्रतिद्वंदी पार्टियां सवाल उठा रही हैं उसका जवाब देने के लिए सपा के पास कौन सी मुस्लिम लीडर शिप हैं। यदि समय रहते आज़म खान बाहर आ जाते हैं और वह सपा की तरफ से मोर्चा संभाल लेते हैं तो शायद प्रतिद्वंदियों को इन सवालों के जवाब मिल जाए या फिर सपा किसी ऐसे मुस्लिम चेहरे को आगे लाए जिस पर मुस्लिम समाज भरोसा करता हो।
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